Physics all question for asked for competition exams in hindi


कंपटीशन एग्जाम में आने वाला फिजिक्स का सभी क्वेश्चन चार्ट के रूप में पढ़िए

 • बल (Force) : …

• आर्किमीडिज का सिद्धांत : …
तैरने की आवश्यक शर्त है : …
• प्रकाश (Light) : …
• प्रतिदीप्त वस्तुएँ (Luminous objects) : …
• अप्रदीप्त वस्तुएँ (Non-luminous objects) : …
• प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light) : …
• विचलन कोण (Angle of Deviation) : …
• वर्ण विक्षेपण (Dispersion of light) : …
• लेंस (Lens) : …
• फोकस बिन्दु (Focus point) : …
• फोकस दूरी (Focal Length) : …
• सामान्य आँख (Nornal eye) : …
 • चुम्बक (Magnet) : …
• विद्युत (Electricity) : …
• विद्युत धारा (Electric Current) : …
 • उदासीन वस्तु (Neutral Body) : …
• विद्युत चालक (Conductors) : …
• विद्युतरोधी (Insulators) : … 





            
    Physics all v.v.i








           स्मरणीय तथ्य (Memorable Facts)


    बल (Force) :


    ☆ बल किसी वस्तु पर आरोपित धक्का या

    खिचाव है।


    ☆ बल का प्रभाव दो वस्तुओं के बीच सम्पर्क तल के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है।


    ☆ एकांक क्षेत्रफल पर आरोपित बल को दाब कहते हैं।

    → द्रव का दाब गहराई बढ़ने पर बढ़ता है तथा किसी गहराई पर प्रत्येक दिशाओं में समान होता है।


    द्रव का दाब  p = hdg

    जहाँ           h = द्रव की गहराई

                     d = द्रव का घनत्व

                     g = गुरुत्व' जनित त्वरण


    ☆  बल का मात्रक न्यूटन (N) और दाब का

    मात्रक न्यूटन प्रति मी' (N/m2) है।


    ☆ हवा और गैस का भार होता है । अतः हवा दाब डालती है।


    ☆ हवा के द्वारा आरोपित दाब को वायुमंडलीय दाब कहते हैं।


    ☆ हवा का दाब सभी दिशाओं में समान होता है।

     

    ☆  रिक्त स्थान (यहाँ तक कि हवा भी नहीं) को निर्वात कहा जाता है ।


    ☆ निर्वात पम्प एक युक्ति है जो किसी पात्र से हवा निकाल कर रिक्त स्थान बनाती है।


    ☆  वायुमंडलीय दाब मापने वाले यंत्र को बैरोमीटर कहा जाता है ।


    ☆ वायुमंडलीय दाब बढ़ने पर बैरोमीटर में पारद स्तम्भ की ऊँचाई बढ़ती है और वायुमंडलीय दाब घटने पर पारद स्तम्भ की ऊँचाई घटती है।


    ★ ऊँचाई बढ़ने पर वायुमंडलीय दाब घटता है

    और गहराई बढ़ने पर द्रव का दाब बढ़ता है। 


    ☆ 76 cm पारद स्तम्भ के दाब को एक वायुमंडलीय दाब कहा जाता है जिसका मान 103360 N/m2 होता है।


    ☆  प्लवमान पिंड पर द्रव के द्वारा ऊपर की ओर लगने वाले बल को उत्प्लावन बल कहा जाता है। इसका मान तैरते पिंड द्वारा विस्थापित द्रव के भार के बराबर होता है।


     ☆ आर्किमीडिज का सिद्धांत - जब कोई वस्तु किसी द्रव में आंशिक रूप से या पूर्णतः डुबायी जाती है तो उसके भार में कमी आ जाती है। भार की यह कमी वस्तु के डूबे भाग द्वारा विस्थापित द्रव के भार के बरबार होता है।


     》तैरने की आवश्यक शर्त है :


    वस्तु का भार = वस्तु के डूबे भाग द्वारा विस्थापित द्रव का भार ।

    उपहार गाइड : विज्ञान



                   प्रकाश (Light) :


    ☆ प्रकाश (Light) प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जिसकी सहायता से हमारी आँखों को वस्तुएँ दिखाई पड़ती हैं।


    ☆ प्रतिदीप्त वस्तुएँ (Luminous objects)—वे वस्तुएँ जो अपने अन्दर से प्रकाश उत्सर्जित करती हैं, उसे प्रतिदीप्त वस्तुएँ कहते हैं। जैसे—जलती हुई मोमबत्ती, सूर्य, दहकता कोयला, जलता हुआ विद्युत बल्ब आदि । 


    ☆ अप्रदीप्त वस्तुएँ (Non-luminous objects) - वे वस्तुएँ जो अपने अन्दर से प्रकाश उत्सर्जित नहीं करती हैं और अँधेरे में रखे जाने पर स्वयं नहीं दीखती हैं, अप्रदीप्त वस्तुएँ कही जाती हैं। जैसे—चन्द्रमा, मेज, कुर्सी आदि ।


    ☆  प्रकाश के परावर्तन में आपतन कोण और परावर्तन कोण समान होते हैं।


    ☆  प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of light)— जब प्रकाश की किरण एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे पारदर्शी में जाती है तो वह अपने पथ से विचलित हो जाती है। प्रकाश की. इस घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।


    ☆  जब प्रकाश किरण विरल माध्यम से सघन

    माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब की ओर झुक जाती है और जब सघन से विरल भाग में जाती है तो वह अभिलम्ब से दूर हट जाती है । 


    ☆  विचलन कोण (Angle of Deviation)—— आपतित किरण और निर्गत किरण के बीच के कोण को विचलन कोण कहा जाता है। 


    ☆  वर्ण विक्षेपण (Dispersion of light) – प्रिज्म

    द्वारा श्वेत प्रकाश का सात अवयव रंगों में विभक्त होना प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहा जाता है। वर्ण विक्षेपण की घटना में लाल रंग का विचलन सबसे कम और बैंगनी रंग का सबसे अधिक होता है।


    ☆ लेंस (Lens)—लेंस किसी पारदर्शी पदार्थ का दो पृष्ठों द्वारा घिरा हुआ एक खंड होता है जिसका कम-से-कम एक पृष्ठ वक्रित (Curved) रहता है।


    लेंस दो प्रकार के होते हैं :

    (i) उत्तल लेंस (Convex lens)

     (ii) अवतल लेंस (Concave lens) 


    ☆ आपतित समान्तर किरणपुंज को उत्तल लेंस अभिसरित करता है और अवतल लेंस अपसरित करता है ।


    ☆ फोकस बिन्दु (Focus point)—–प्रधान अक्ष के समान्तर आपतित प्रकाश की किरणें लेंस से अपवर्तन के बाद प्रधान अक्ष के जिस बिन्दु पर मिलती हैं अथवा मिलती हुई प्रतीत होती हैं, उस बिन्दु को लेन्स का फोकस बिन्दु या सिर्फ फोकस कहते हैं। 


    ☆  फोकस दूरी (Focal Length)-लेंस के मध्य बिंदु से फोकस बिन्दु की दूरी को लेंस की फोकस दूरी 'J' कहा जाता है। 


    ☆  लेंस को एक प्रकाश केन्द्र, दो फोकस बिन्दु,

    दो फोकस दूरियाँ, दो वक्र त्रिज्याएँ होती है। 


    ☆ लेंस की वक्रता जितनी ही अधिक होती है, फोकस दूरी उतनी ही कम होती है।


    ☆ जब वस्तु उत्तल लेंस के सामने फोकस से बाहर रखी जाती है तो प्रतिबिंब उल्टा और वास्तविक एवं वस्तु के दूसरी ओर बनता है परन्तु जब वस्तु फोकस के अन्दर रखी जाती है तो प्रतिबिम्ब वस्तु की ओर आभासी, सीधा और विशालित बनता है।


    ☆ अवतल लेंस में प्रतिबिम्ब हमेशा आभासी, सीधा और छोटा वस्तु की ओर बनता है।


     ☆ सूक्ष्मदर्शी वह प्रकाशकीय यंत्र है जो अति सूक्ष्म वस्तुओं को देखने के लिए उपयोग किया जाता है जिसे नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता है।


    ☆ दूरदर्शी वह प्रकाशकीय यंत्र है जिसकी सहायता से दूरस्थ या आकाशीय पिंडों को देखा जाता है।


    ☆ मानव नेत्र में दो प्रकार के दोष पाए जाते हैं : 


    (i) निकट दृष्टि (Myopia) 

    (ii) दूरदृष्टि (Hypermetropia)


    ☆ निकट दृष्टि-आँख का वह दोष जिसमें

    पीड़ित आँख निकट की चीजें देख सकती है परन्तु दूर की चीजें नहीं देख सकती है ।


     ☆ दूर दृष्टि- आँख का वह दोष जिसमे पीड़ित

    आँखें दूर की चीजें देख सकती हैं परन्तु निकट की चीजें नहीं देख सकती हैं।


    ☆ सामान्य आँख (Nornal eye)  — वह आँख जो 25 सेमी से अनन्त के बीच स्थित किसी भी पिंड को देख सकती है।


                      चुम्बक (Magnet) :




    ☆  कुछ पदार्थ जैसे—खनिज मैग्नेटाइट चुम्बकीय गुणों को दर्शाते हैं। अथवा वे लोहे के टुकड़ों को आकर्षित करते हैं तथा हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में आकर टिकते है |


    ☆ किसी भी चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं :

     (i) उत्तरी ध्रुव,

     (ii) दक्षिणी ध्रुव ।


     जब चुम्बक को मुक्त रूप से लटकाया जाता है, तो जो सिरा और ध्रुव उत्तर दिशा में टिकता है उसे उत्तरी जो सिरा दक्षिण दिशा में टिकता है, उसे दक्षिणी ध्रुव कहा जाता है।



    



    ☆ चुम्बक के दो मौलिक गुण होते हैं।


     (i) आकर्षक गुण और

     (ii) दैशिक गुण ।


    ☆  दो चुम्बकों के सजातीय ध्रुवों में प्रतिकर्षण और विजातीय ध्रुवों में आकर्षण होता है। 


    ☆ पृथ्वी एक विशाल चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है जिसका उत्तरी ध्रुव उसके भौगोलिक दक्षिण दिशा में होता है और दक्षिणी ध्रुव भौगोलिक उत्तर दिशा में होता है। 


    ☆ चुम्बकीय ध्रुव सदैव विपरीत युग्मों में होता है। किसी चुम्बक को कितने भी सूक्ष्म भागा में क्यों विभाजित किया जाय उसके उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव अलग नहीं किये जा सकते हैं।


    ☆  चुम्बकीय पदार्थ छोटे-छोटे क्षेत्रों से मिलकर बने होते हैं जिनके छोटे-छोटे चुम्बक समान दिशा में संरेखित होते हैं। इन छोटे-छोटे क्षेत्रों को चुम्बकीय डोमेन कहा जाता है।


    ☆ लोहे का टुकड़ा भी सूक्ष्म डोमेनों का बना होता है । साधारणतः ये डोमेन यादृच्छिक (at random) ढंग से व्यवस्थित रहते हैं जिसके फलस्वरूप वे एक-दूसरे के चुम्बकीय प्रभाव को निरस्त कर देते हैं। यदि पास में कोई चुम्बक मौजूद हो तो ये चुम्बकीय डोमेन संरेखित हो जाते हैं ।


    ☆ लोहे को आकर्षित करते समय चुम्बक पहले लोहे को प्रभावित कर उसे अस्थायी चुम्बक बनाता है। फलतः प्रभावित करने वाले चुम्बक के ध्रुव के निकट का सिरा विजातीय ध्रुव बन जाता है।


    ☆ प्रतिकर्षण चुम्बक की कसौटी है ।


    ☆ धारावाही चालक चुम्बक की भाँति व्यवहार करता है एवं उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है ।


                        विद्युत (Electricity) :


    ☆ विद्युत धारा (Electric Current) - विद्युत आवेशों के प्रवाह को विद्युत धारा कहते हैं ।


     ☆ विद्युत आवेश की इकाई कूलॉम है । 


    ☆ उदासीन वस्तु (Neutral Body)– जिस वस्तु पर समान मात्राओं में धन और ऋण आवेश होता है, उसे उदासीन वस्तु कहते हैं । 


    ☆ विद्युत चालक (Conductors) – जो अपने में से विद्युत आवेश प्रवाहित होने देते हैं, उसे विद्युत चालक कहते हैं। जैसे  सभी धातु, लवण, अम्ल आदि |


    ☆ विद्युतरोधी (Insulators)—जिस पदार्थ से विद्युत आवेश प्रवाहित नहीं होती है उसे विद्युतरोधी कहते हैं। जैसे—रबर, कागज, लकड़ी, पत्थर, प्लास्टिक आदि । 


    ☆  विद्युत अपघट्य (Electrolyte) विद्युत वे घोल या द्रवित पदार्थ हैं, जिनसे अपवट्य विद्युत धारा प्रवाहित होती है तथा धारा के प्रवाह से अपने अवयवों में टूट जाता है। 


    ☆ विद्युत अपघटन (Electrolysis)—धारा के

    प्रवाह से विद्युत अपघट्य का अपने अवयवों में टूटने की क्रिया को विद्युत अपघटन कहा जाता है।


    ☆ विद्युताग्र (Electrodes)—विद्युत अपघट्य में डूदे धातु के वे दो पतले पत्तर जिनसे होकर धारा विद्युत अपघट्य में प्रवेश करती है और बाहर निकलती है, उसे विद्युताम्र कहते हैं। 


    ☆ सेल (Cell)-सेल एक युक्ति है जिसकी सहायता से रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिणत किया जाता है।


    ☆ शुष्क (Dry Cell)-वह सेल जिसमें सेल विद्युत अपघट्य घोल या द्रव अवस्था में नहीं होता है बल्कि पेस्ट के रूप में प्रयोग होता है, उसे शुष्क सेल कहा जाता है।


    ☆  संचायक सेल (Storage Cell) — वह सेल

    जिसमें पहले विद्युत ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित की जाती है और बाद में संचित ऊर्जा का परिवर्तन विद्युत ऊर्जा में किया जाता है, संचायक सेल कहा जाता है । ऊर्जा के संचयन होने के कारण ही इसे संचायक सेल कहते हैं ।


    ☆  सोलर सेल (Solar Cell)—वह सेल जिसमें सूर्य ऊर्जा का परिवर्तन विद्युत ऊर्जा में होता है, सोलर सेल कहा जाता है।


    ☆  विद्युत धारा मुख्यतः तीन प्रभाव उत्पन्न करते हैं:

     (i) चुम्बकीय प्रभाव, 

    (ii) ऊष्मीय प्रभाव, 

    (iii) रासायनिक प्रभाव ।


    ☆  विद्युत प्रेस, विद्युत बल्ब, विद्युत ऊष्मक

    आदि में विद्युत के ऊष्मीय प्रभाव का उपयोग किया जाता है।


    ☆  विद्युत लेपन, विद्युत विघटन, धातु के शुद्धीकरण आदि में विद्युत धारा के रासायनिक प्रभाव का उपयोग किया जाता है।


     ☆  विद्युत मोटर, विद्युत घंटी आदि के निर्माण में विद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव का उपयोग किया जाता है।


    ☆  विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)—जब कोई चालक चुम्बकीय क्षेत्र में चलाया जाता है तो चालक में एक धारा उत्पन्न होती है। इस धारा को प्रेरित धारा (Induced Current) कहा जाता है तथा इस घटना को विद्युत चुम्बकीय प्रेरण कहा जाता है । 


    ☆  डायनेमो या जनित्र   (DynamoGenerator) —–—डायनेमो या जनित्र वह युक्ति है जिसमें चालक (कुंडली) को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाकर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण विधि द्वारा विद्युत धारा उत्पन्न की जाती है। डायनेमों में यांत्रिक ऊर्जा का परिवर्तन विद्युत ऊर्जा में होता है और यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।


    ☆  तापन अवयव (Heating Element) - विद्युत

    साधित्र का वह भाग जो विद्युत द्वारा गर्म होता है, तापन अवयव कहा जाता है। यह प्रायः निकिल और क्रोमियम धातुओं से बना मिश्रधातु (Alloy) होता है। इसका गलनांक तथा प्रतिरोध बहुत ऊँचा होता है। विद्युत बल्ब का तापन अवयव गर्म होकर चमकले लगता है और प्रकाश उत्पन्न करता है।


    ☆  फ्यूज तार (Fuse Wire ) —फ्यूज तार टीन और लेड धातु से बना मिश्रधातु है जिसका गलनांक कम तथा प्रतिरोध उच्च होता है। यह चीनी मिट्टी के बर्तन में मुख्य धारा-प्रवेश पर लगा रहता है। जब कभी उच्च धारा बहती है तो यह तार स्वयं गलकर टूट जाता है तथा मकान में आग लगने एवं विद्युत आघात से बच जाता है।


    ☆  भूतार (Ground Wire or Earth Wire )—वह तार जो विद्युत साधित्र के फ्रेम और पृथ्वी के बीच लगी होती है, भूतार कहा जाता है। इस तार के उपयोग से विद्युत साधित्र के ऊपर आये विद्युत धारा की पृथ्वी में भेजना है ताकि उन साधित्रों का उपयोग करनेवाला व्यक्ति विद्युत आघात से पीड़ित न हो सके।


     ☆  विद्युत आघात का परिमाण विद्युत धारा की

    शक्ति तथा प्रवाहित होने के समय पर निर्भर करता है। विद्युत आघात से जीवित कोशिकाएँ मर जाती हैं तथा हृदय की गति अनियंत्रित हो जाती है। आदमी की मृत्यु तक हो जाती है। 


    ☆ दिष्ट धारा (Direct Current )—वह धारा जो एक ही दिशा में बहती है, दिष्ट धारा कही जाती है जिसे संक्षेप में D.C. कहा जाता है।


     ☆ प्रत्यावर्ती धारा(Alternating Current)—–—वह

    धारा जिसका मान और दिशा दोनों बदलता रहता है, उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं। घरेलू उपयोग में प्रत्यावर्ती धारा ही प्रयुक्त होती है, जिसकी आवृत्ति 50 हर्टज होती है। प्रत्यावर्ती धारा को संक्षेप में A.C. कहते हैं। गति 


                        गति   (Motion) :


    ☆ एक वस्तु की गति का समान या असमान होना उस वस्तु के वेग पर निर्भर करता है जो कि नियत है या बदल रहा है।


    ☆  प्रति इकाई समय में वस्तु के द्वारा तय की गई दूरी उसकी चाल है और प्रति इकाई समय में हुआ विस्थापन उसका वेग है।


    ☆ किसी वस्तु का त्वरण प्रति इकाई समय में उसके वेग में होनेवाला परिवर्तन है । 

    > ग्राफों के द्वारा वस्तु की समान और असमान गति को दर्शाया जा सकता है।


    ☆  एकसमान त्वरण से चल रही एक वस्तु की गति की व्याख्या निम्न तीन समीकरणों के माध्यम से की जाती है :


    v=u+at

    S=ut + - at

    2

    2as = v2 - u2


    जहाँ “ u वस्तु का प्रारंभिक वेग है, जो कि । समय के लिए एकसमान त्वरण a से गात करती है, इसका अन्तिम वेग v है और । समय में तय की गई दूरी s है।


    ☆  अगर कोई वस्तु वृत्तीय पथ पर एकसमान नाल से चलती है तो उसकी गति को एकसमान वृत्तीय गति कहा जाता है। 


    ☆ गति का प्रथम नियम- वस्तु विरामावस्था अथवा सरल रेखा पर एक समान गति की अवस्था में तब तक बनी रहती है, जब तक उस पर कोई असंतुलित बल कार्य न करे


    ☆ वस्तुओं द्वारा अपनी गति की अवस्था में परिवर्तन का प्रतिरोध करने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं।


    ☆  किसी वस्तु का द्रव्मयान उसके जड़त्व की

    माप है। इसका SI मात्रक किलोग्राम (kg) है। 


    ☆  घर्षण बल सदैव वस्तु की गति का प्रतिरोध करता है ।


    ☆ गति का द्वितीय नियम - किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर वस्तु पर आरोपित असंतुलित बल के समानुपाती एवं बल की दिशा में होती है।


    ☆  बल का SI मात्रक kg ms-2 है। इसे न्यूटन के. नाम से भी जाना जाता है तथा प्रतीक N द्वारा व्यक्त किया जाता है। न्यूटन का बल किसी 1 kg द्रव्यमान की वस्तु में 1ms-2 का त्वरण उत्पन्न करता है।


    ☆  वस्तु का संवेग, उसके द्रव्यमान एवं वेग का गुणनफल होता है तथा इसकी दिशा वही होती है, जो वस्तु के वेग की होती है। इसका SI मात्रक kg ms' होता है।


    ☆ गति का तृतीय नियम—प्रत्येक क्रिया के समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है। ये दो विभिन्न वस्तुओं पर कार्य करती हैं ।


    ☆  किसी दिलग निकाय में कुल संवेग संरक्षित रहता है।


    ☆ गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार किन्हीं दो पिंडों के बीच आकर्षण बल उन दोनों के द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह नियम सभी पिंडों पर लागू होता है चाहे वह विश्व में कहीं भी हो। इस प्रकार के नियम को सार्वत्रिक नियम कहते हैं । 


    ☆ गुरुत्वाकर्षण एक क्षीण बल है जब तक कि बहुत अधिक द्रव्यमान वाले पिंड संबद्ध न हों ।


    ☆  पृथ्वी द्वारा लगाए जाने वाले गुरुत्वाकर्षण बल को गुरुत्व बल कहते हैं।


    ☆ गुरुत्वीय बल पृथ्वी तल से ऊँचाई बढ़ने पर कम होता जाता है। यह पृथ्वी तल के विभिन्न स्थानों पर भी परिवर्तित होता है और इसका मान ध्रुवों से विषुवत वृत्त की ओर घटता जाता है :


    ☆  किसी वस्तु का भार, वह बल है जिससे पृथ्वी उसे अपनी ओर आकर्षित करती है।


    ☆ किसी वस्तु का भार, द्रव्यमान तथा गुरुत्वीय चरण के गुणनफल के बराबर होता है।


    ☆  किसी वस्तु का भार भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न- भिन्न हो सकता है, किंतु द्रव्यमान स्थिर रहता है। 


    ☆  सभी वस्तुएँ किसी तरल में डुबाने पर उत्प्लावन बल का अनुभव करती हैं। 


    ☆  जिस द्रव में वस्तुओं को डुबोया जाता है उसके घनत्व से कम घनत्व की वस्तुएँ द्रव की सतह पर तैरती हैं। यदि वस्तु का घनत्व, डुबोए जाने वाले द्रव से अधिक है तो दे द्रव में डूब जाती हैं।


                            कार्य (Work) :



    > कार्य (Work)—किसी पिंड पर किया गया कार्य, उस पर लगाए गए बल के परिमाण व बल की दिशा में उसके द्वारा तय की गई दूरी के गुणनफल से परिभाषित होता है। कार्य का मात्रक जूल है अर्थात् 1 जूल = 1 न्यूटन x 1 मीटर ।


     ☆  किसी पिंड का विस्थापन शून्य है तो बल द्वारा उस पिंड पर किया गया कार्य शून्य होगा । 


    ☆  यदि किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता हो तो यह कहा जाता है कि उसमें ऊर्जा है। ऊर्जा का मात्रक वही है जो कार्य का है। 


    ☆  किसी गतिमान पिंड में उसकी गति के कारण ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं। v वेग से गतिशील किसी m द्रव्यमान की वस्तु की

           गतिज ऊर्जा ½ mv के बराबर होती है।


    ☆  वस्तु द्वारा उसकी स्थिति अथवा आकृति में

    परिवर्तन के कारण प्राप्त ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। पृथ्वी के तल से ऊँचाई तक उठाई गई किसी mt द्रव्यमान की वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा mgh होगी। 


    ☆  ऊर्जा-संरक्षण नियम के अनुसार ऊर्जा का केवल

    एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरण हो सकता है । इसकी न तो उत्पत्ति की जा सकती है और न ही विनाश। रूपांतरण के पहले व रूपांतरण के पश्चात् कुल ऊर्जा सदैव अचर रहती है।


     ☆  प्रकृति में ऊर्जा विभिन्न रूपों में विद्यमान रहती है; जैसे—तिज ऊर्जा, स्थितिज ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि । किसी वस्तु की गतिज तथा स्थितिज ऊर्जाओं के योग को उसकी कुल यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं । 


    ☆  कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। शक्ति का SI मात्रक वाट है।

                      1 W = 1 J/s


    ☆ 1 kW की दर से एक घंटे में व्यय हुई ऊर्जा एक किलोवाट घंटा (1 kWh) के बराबर होती है ।



                         ध्वनि (Sound) :



    ☆ ध्वनि विभिन्न वस्तुओं के कंपन करने के कारण उत्पन्न होती है ।


    ☆ ध्वनि किसी द्रव्यात्मक माध्यम में अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में संचरित होती है।


    ☆  ध्वनि माध्यम में क्रमागत संपीड़नों तथा विरलनों के रूप में संचरित होती है।


     ☆  ध्वनि संचरण में, माध्यम के कण आगे नहीं बढ़ते, केवल विक्षोभ ही संचरित होता है।


    ☆ ध्वनि निर्वात में संचरित नहीं हो सकती ।


    ☆  ध्वनि के अधिकतम मान से न्यूनतम मान और पुनः अधिकतम मान के परिवर्तन से एक दोलन पूरा होता है।


    ☆  वह न्यूनतम दूरी जिस पर किसी माध्यम का घनत्व या दाब आवर्ती रूप में अपने मान की पुनरावृत्ति करता है, ध्वनि का तरंगदैर्ध्य  कहलाता है ।


    ☆ तरंग द्वारा माध्यम के घनत्व के एक संपूर्ण दोलन में लिये गए समय को आवर्तकाल (T) कहते हैं।


    ☆ एकांक समय में दोलनों की कुल संख्या को


    आवृत्ति (v) कहते हैं V = 1/t .


    ☆ ध्वनि का वेग (v), आवृत्ति (u) तथा तरंगदैर्घ्य में संबंध है, v = hu.


     ☆ ध्वनि की चाल मुख्यतः संचरित होने वाले

    माध्यम की प्रकृति तथा ताप पर निर्भर होती है। 


    ☆  ध्वनि के परावर्तन के नियम के अनुसार, ध्वनि

    के आपतन होने की दिशा तथा परावर्तन होने की दिशा, परावर्तक सतह पर खींचे गए अभिलंब से समान कोण बनाते हैं और ये तीनों एक ही तल में होते हैं। 


    ☆ स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 s का समय अंतराल अवश्य होना चाहिए।


     ☆ किसी सभागार में ध्वनि-निर्बंध बारंबार परावर्तनों के कारण होता है और इसे अनुरणन कहते हैं।


    ☆  ध्वनि के अभिलक्षण जैसे तारत्व, प्रबलता

    तथा गुणता संगत तरंगों के गुणों द्वारा निर्धारित होते हैं।


    ☆  प्रबलता ध्वनि की तीव्रता के लिए कानों की शारीरिक अनुक्रिया है ।


    ☆ किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकंड में गुजरनेवाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं ।


    ☆  मानव में ध्वनि की श्रव्यता की आवृत्तियों का औसत परास 20 Hz से 20 kHz तक है।


    ☆  श्रव्यता के परास से कम आवृत्तियों की ध्वनियों को 'अवश्रव्य' ध्वनि तथा श्रव्यता के परास से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों को 'पराध्वनि' कहते हैं ।


    ☆ पराध्वनि के चिकित्सा तथा प्रौद्योगिक क्षेत्रों में अनेक उपयोग हैं।



                        ऊष्मा (Heat) :



    ☆  ऊष्माधारिता-पिंड को दी गई ऊष्मा का परिमाण और उस ऊष्मा के कारण उसके ताप में वृद्धि के अनुपात को उस पिंड की ऊष्माधारिता कहते हैं ।


    ☆  एकांक द्रव्यमान के पिंड की ऊष्माधारिता को उस पिंड के पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं ।


          



    Physics all formula and si matrak for competition






    


    ☆  दूसरे शब्दों में, किसी पदार्थ की विशिष्ट

    ऊष्मा उसके एकांक द्रव्यमान के ताप को एक

    डिग्री से बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा का परिमाण है। विशिष्ट ऊष्मा को विशिष्ट ऊष्माधारित भी कहते हैं : इसका मान पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है 


    ☆ m किग्रा पदार्थ के ताप को ^T से बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा का परिमाप Q = m.c. ^T जूल, जहाँ c पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा है।


    ☆ एक कैलोरी परिमाण की ऊष्मा वह ऊष्मा है जिससे 15°C पर के एक ग्राम पानी के ताप

    को 1°C से बढ़ाया जाता है।

    1 कैलोरी = 4.2 जूल ।


    ☆  चाल एक अदिश राशि है लेकिन वेग सदिश राशि है ।


    ☆ दूरी और विस्थापन में विस्थापन कभी बड़ा नहीं होता है।


    ☆ ऋणात्मक त्वरण को विमंदन कहा जाता है। > गति के समीकरणों के प्रयोग के लिए संकेतों के मान मानक मात्रकों में लिये जाते हैं।


     ☆  वृत्तीय मार्ग पर गति में चाल स्थिर रहती हैं।

    गति की दिशा निरंतर बदलती रहती है।


     ☆  सदिशों को जोड़ना तथा घटाना दोनों संभव है। > दूरी की माप किसी एक नियत बिंदु से ली जाती है ।


    ☆  बल आरोपित होने पर प्रभावित पिण्ड में गति उत्पन्न हो जाना आवश्यक नहीं है। 


    ☆  समान संवेग वाले दो पिण्डों में जिसका द्रव्यमान कम होता है, वह अधिक वेग से गतिमान होता है।


    ☆ जड़त्व का गुण सभी पिण्डों में होता है। 


    ☆  संतुलित बल प्रभावित पिण्ड में कोई अन्तर नहीं लाता है।


    ☆  बल का एक मात्रक 'डाइन' भी है।


    ☆  आवेग (बल x सयम) और संवेग (द्रव्यमान x वेग) अलग-अलग राशि है।


    ☆ आर्कमिडीज का सिद्धान्त द्रव के साथ-साथ गैसों के लिए भी सत्य है ।


    ☆  वस्तु का द्रव्यमान दंड-तुला से मापा जाता है। भारहीनता गुरुत्व की अनुपस्थिति नहीं है। 


    ☆ ऊर्जा का न तो निर्माण किया जा सकता न ही

    विनाश ।


    ☆  ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा

    सकता है।


    ☆ परिभाषा के पूर्णतः अनुकूल परम लोलक

    संभव नहीं है।


    ☆  माध्यम म एकल कंपन स्पंद कहलाता है जो

    अल्पकालिक तरंग है ।


    ☆ ध्वनि तरंगों के गमन के लिए माध्यम की

    आवश्यकता होती है ।


    ☆  विभिन्न माध्यमों में ध्वनि का वेग भिन्न-भिन्न

    होता है ।


    ☆ सोनार का प्रयोग पानी के नीचे न दिखने वाली

    वस्तुओं का पता लगाने के लिए किया जाता

    है ।


                


          अगर कोई गलती हुई हो तो क्षमा करिएगा









    टिप्पणियाँ

    इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

    श्री हनुमान चालीसा |hanuman chalisa lyrics in hindi with pdf

    2023 Asia cup India Vs Pakistan Rohit Sharma KL Rahul Practice Shaheen Afridi